हिंदू राष्ट्र: जब संगीत के सुर बन जाएं नफ़रत के हथियार

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“हिंदुस्तान में रहना हो तो वन्दे मातरम कहना सीखो.. और औकात में रहना सीखो..”

ये बोल एक म्यूज़िक वीडियो के हैं जिसका शीर्षक है “हर घर भगवा छायेगा”. अपने मोबाइल फ़ोन पर इस वीडियो को देखते हुए 23 साल के विजय यादव के चेहरे पर एक मुस्कुराहट है और वो इस गीत को गुनगुनाने से खुद को रोक नहीं पाते.

विजय एक स्केच आर्टिस्ट हैं और ललित कला अकादमी से पढ़ाई कर रहे हैं. इस गीत को सुनते हुए वे कहते हैं, “बहुत ऊर्जा आ जाती है शरीर में. ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे साथ एक समय पर क्या-क्या हुआ… कभी एक वक़्त था, हमारे साथ ऐसा हुआ था और आज हम किस स्टेज पर आकर खड़े हैं.”

जिस ऊर्जा की बात विजय कर रहे हैं शायद उसी का एक विकराल रूप इस साल अप्रैल के महीने में राजस्थान के करौली, मध्य प्रदेश के खरगोन, दिल्ली के जहांगीरपुरी और उत्तराखंड के रुड़की में देखने को मिला.

ये वो जगहें हैं जहां राम नवमी, हनुमान जयंती और हिन्दू नव वर्ष के अवसर पर हिन्दू और मुसलमान समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुईं.

आरोप ये लगा कि इन सभी हिंसक घटनाओं को भड़काने में एक बड़ी भूमिका उन आपत्तिजनक गानों की थी जो हिन्दुओं के धार्मिक जुलूसों में बजाये जा रहे थे.

एक भड़काऊ गीत का ज़िक्र बार-बार आया.

इस गीत के बोल इतने आपत्तिजनक हैं कि उन्हें यहाँ लिखा नहीं जा सकता. लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि ये गाना कम, धमकी ज़्यादा लगता है जिसमें एक समुदाय को बताया जा रहा है कि जब हिंदुत्व जाग जायेगा तो क्या होगा.

गाना कम, धमकी ज़्यादा

इस विवादास्पद गीत को अयोध्या में रहने वाले संदीप चतुर्वेदी ने साल 2016 में बनाया था. करीब एक दशक पहले संदीप ने शुरुआत भजन गाने से की लेकिन कुछ साल पहले अपना रास्ता बदल लिया और ऐसे गाने बनाने शुरू किए जिनमें कथित राष्ट्रवाद और हिन्दू धर्म के मिश्रण से मुसलमान समुदाय पर निशाना साधा गया. इन गीतों से उन्हें रातों-रात प्रसिद्धि भी मिली.

चतुर्वेदी का कहना है कि हजारों शिकायतों के बाद उनके चैनल के सस्पेंड होने से पहले उनके इस गाने को यूट्यूब पर लाखों बार देखा जा चुका था. वे इस गीत को अनुपयुक्त सामग्री के रूप में रिपोर्ट करने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराते हैं.

संदीप ये तो कहते हैं कि उन्होंने यूट्यूब पर लाखों सब्सक्राइबर्स को खो दिया लेकिन ये नहीं बताते कि वो यूट्यूब से कितना पैसा कमा रहे थे.

उनका कहना है कि एक म्यूज़िक वीडियो बनाने में वे लगभग 20 हज़ार रुपये का खर्चते हैं. वे कहते हैं, “ये पैसे की बात नहीं है. मैं यूट्यूब से कुछ ख़ास नहीं कमा रहा था. एक राष्ट्रवादी-क्रांतिकारी गायक के रूप में मुझे जो पहचान मिली, वह अधिक महत्वपूर्ण है.”

‘ये संगीत नहीं, युद्ध का आह्वान है’

संदीप चतुर्वेदी तो सिर्फ़ एक उदाहरण हैं. यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक सरसरी नज़र डालें तो दर्जनों ऐसे गाने उपलब्ध हैं जिनमें हिन्दू दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरी बातें करते दिखाई देते हैं. ऐसे गाने जिनकी भाषा अपमानजनक और धमकी भरी है. इनमें से कई गीतों को लाखों बार देखा जा चुका है.

पिछले कुछ महीनों में दो समुदायों के बीच हुई हिंसक घटनाओं में बार-बार इस तरह के गानों की भूमिका का ज़िक्र आया है.

नीलांजन मुखोपाध्याय एक लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हैं जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रमुख हस्तियों जैसे विषयों पर किताबें लिखी हैं.

वे कहते हैं, “ये संगीत नहीं, युद्ध का आह्वान है. युद्ध जीतने के लिए संगीत का इस्तेमाल हो रहा है. तो ये एक तरह से संगीत का दुरुपयोग है जो आज ही नहीं बहुत सालों से हो रहा है. इसका इस्तेमाल कभी कम होता है कभी ज़्यादा बढ़ जाता है. आज के दौर में हमें ज़्यादा देखने को मिल रहा है.”

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