मां भुवनेश्वरी जो नमक के बोरे में प्रवेश कर भक्त के साथ पहुंचीं उत्तराखंड, अब यहां है प्रसिद्ध मंदिरअगर आपको धार्मिक यात्राओं का शौक है और आप देश के कोने-कोने में मौजूद मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं, तो इस बार आप मां भुवनेश्वरी के दर्शन कर सकते हैं.
अगर आपको धार्मिक यात्राओं का शौक है और आप देश के कोने-कोने में मौजूद मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं, तो इस बार आप मां भुवनेश्वरी के दर्शन कर सकते हैं. यह शक्तिपीठ उत्तराखंड के देवप्रयाग में स्थित है जिसकी बेहद मान्यता है. कहा जाता है कि यहां मां भुवनेश्वरी भक्त के साथ नमक के बोरे में प्रवेश कर आई थी और उसके बाद यहां उनके मंदिर का निर्माण किया गया. यह मंदिर अब मां भुवनेश्वरी मणिद्वीप धाम सिद्धपीठ कहलाता है और यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं. आइये इस मंदिर से जुड़ी कथा और यहां के बारे में जानते हैं.
देवप्रयाग से 11 किमी दूर है यह प्रसिद्ध मंदिर
मां भुवनेश्वरी मणिद्वीप धाम सिद्धपीठ सांगुड़ा तिल्या बिलखेत नामक जगह पर है. यह जगह देवप्रयाग से करीब 11 किलोमीटर दूर है. यहां मां के दर्शन के लिए जाने वाले भक्कों को आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ ही बेहद सुकून भी मिलता है. मंदिर समिति से जुड़े हुए सुतीक्ष्ण नैथानी का कहना है कि मां भुवनेश्वरी मंदिर आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है. पूरे उत्तराखंड में इस मंदिर की बेहद मान्यता है. हर नवरात्रि इस मंदिर में बड़ा आयोजन होता है और भक्त मां की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.
इस क्षेत्र के मूल निवासी राजेश नैथानी कहते हैं कि मां भुवनेश्वरी की पूरे क्षेत्र पर विशेष कृपा है. यहां आने वाले भक्तों को हमेशा ही सकारात्मक अहसास होता है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस मंदिर में मां का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं.
नमक के बोरे में भक्त के साथ यहां आई थी मां भुवनेश्वरी
इस मंदिर को लेकर लोकश्रुति है कि पौड़ी जनपद के मनियारस्यूं पट्टी के सैनार गांव के नेगी बंधु नजीबाबाद नमक लेने गये थे. वो 5 भाई थे. कहा जाता है कि नमक खरीदते वक्त मां भुवनेश्वरी भी उनके नमक के बोरे में सूक्ष्म रूप में प्रवेश कर गईं. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही नेगी बंधु कोटद्वार -दुगड्डा होते हुए सांगुड़ा गांव पहुंचे मां ने अपनी शक्ति दिखाना शुरू कर दिया.
नमक के बोरे का बजन काफी ज्यादा बढ़ गया और उसे उठाना मुश्किल हो गया. जब पांचों भाइयों ने नमक के बोरे में देखा तो उन्हें उसमें एक पिंडी (पत्थर) मिला. जिसे उन्होंने सामान्य पत्थर समझकर फेंक दिया. जिसके बाद रात्रि में मां भुवनेश्वरी ने भवानी नेगी को स्वप्न में दर्शन दिये जिसके बाद उनका यहां मंदिर बनाया गया. पहाड़ी के तलहटी पर निर्मित इस मंदिर से आप आसपास के खूबसूरत नजारे भी देख सकते हैं. चारों तरफ फैले जंगल और हरियाली मंदिर की खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देती है.