नई दिल्ली: 8 मिनट पहले
महाराष्ट्र में 54 दिन से जारी सियासी संकट पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से दाखिल 5 याचिकाओं पर सुनवाई कल तक के लिए टल गई है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने सबसे पहले पूछा कि क्या सभी पक्षों ने मामले से जुड़े कानूनी सवालों का संकलन जमा करा दिया है। इस पर राज्यपाल के वकील सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता- मैं अभी जमा करवा रहा हूं।
सबसे पहले उद्धव कैंप के वकील कपिल सिब्बल ने कहा- अगर 2 तिहाई विधायक शिवसेना से अलग होना चाहते हैं, तो उन्हें किसी से विलय करना होगा या नई पार्टी बनानी होगी। वह नहीं कह सकते कि वह मूल पार्टी हैं। CJI ने पूछा कि मतलब आप कह रहे हैं कि उन्हें BJP में विलय करना चाहिए था या अलग पार्टी बनानी थी। सिब्बल बोले- कानूनन तो यही करना था।
उद्धव गुट की ओर से सिब्बल और सिंघवी ने की जिरह
सिब्बल बोले- जिस तरह से उन्होंने (शिंदे गुट) पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है। वे मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। 10वीं अनुसूची इसकी अनुमति नहीं देती है। पार्टी सिर्फ विधायकों का समूह नहीं होती है। इन लोगों को पार्टी की बैठक में बुलाया गया। वह नहीं आए। डिप्टी स्पीकर को चिट्ठी लिख दी। अपना व्हिप नियुक्त कर दिया। असल में उन्होंने पार्टी छोड़ी है। वह मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। आज भी शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे हैं।
सिब्बल ने कहा- जब संविधान में 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी प्रावधान) को जोड़ा गया, तो उसका कुछ उद्देश्य था। अगर इस तरह के दुरुपयोग को अनुमति दी गई तो विधायकों का बहुमत सरकार को गिरा कर गलत तरीके से सत्ता पाता रहेगा और पार्टी पर भी दावा करेगा। पार्टी की सदस्यता छोड़ने वाले विधायक अयोग्य हैं। चुनाव आयोग जाकर पार्टी पर दावा कैसे कर सकते हैं?
उद्धव कैंप के दूसरे वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा इन लोगों को किसी पार्टी में विलय करना था। वह जानते हैं कि असली पार्टी नहीं हैं। लेकिन, चुनाव आयोग से मान्यता पाने की कोशिश कर रहे हैं।
शिंदे गुट की ओर से साल्वे, कौल और जेठमलानी ने रखा पक्ष
शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे: जिस नेता को बहुमत का समर्थन न हो। वह कैसे बना रह सकता है? सिब्बल ने जो बातें कही हैं, वह प्रासंगिक नहीं हैं। किसने इन विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया? जब पार्टी में अंदरूनी बंटवारा हो चुका हो तो दूसरे गुट की बैठक में न जाना अयोग्यता कैसे हो गया?
इस पर CJI ने पूछा: इस तरह से तो पार्टी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। विधायक चुने जाने के बाद कोई कुछ भी कर सकेगा।
साल्वे ने जवाब दिया: हमारे यहां एक भ्रम है कि किसी नेता को ही पूरी पार्टी मान लिया जाता है। हम अभी भी पार्टी में हैं। हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। हमने नेता के खिलाफ आवाज उठाई है। किसी ने शिवसेना नहीं छोड़ी है। बस पार्टी में 2 गुट हैं। क्या 1969 में कांग्रेस में भी ऐसा नहीं हुआ था? कई बार ऐसा हो चुका है। चुनाव आयोग तय करता है। इसे विधायकों की अयोग्यता से जोड़ना सही नहीं। वैसे भी किसी ने उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया।
CJI ने फिर पूछा: आप चुनाव आयोग क्यों गए हैं?
साल्वे: सीएम के इस्तीफे के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है। अब बीएमसी चुनाव आने वाला है। यह तय होना जरूरी है कि पार्टी का चुनाव चिह्न कौन इस्तेमाल करेगा।
CJI: आप दोनों में पहले SC कौन आया था?
साल्वे: हम आए थे क्योंकि डिप्टी स्पीकर ने अयोग्यता का नोटिस भेजा था। लेकिन, उनके खिलाफ खुद ही पद से हटाने की कार्रवाई लंबित थी। वह नबाम रेबिया फैसले के चलते ऐसा नहीं कर सकते थे।
CJI: हमने 10 दिन के लिए सुनवाई टाली थी। इस बीच आपने सरकार बना ली। स्पीकर बदल गए। अब आप कह रहे हैं, सारी बातें निरर्थक हैं। साल्वे: मैं ऐसा नहीं कह रहा कि इन बातों पर अब विचार ही नहीं होना चाहिए। CJI: ठीक है हम सभी मुद्दों को सुनेंगे। शिंदे कैंप के दूसरे वकील नीरज किशन कौल: दूसरा पक्ष चाहता है कि कोई भी दूसरी संवैधानिक संस्था अपना काम न करें। उसकी जगह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट तय करें। CJI: सबसे पहले आप ही सुप्रीम कोर्ट आए थे। कौल: मैं स्वीकार करता हूँ कि हम पहले हाई कोर्ट भी जा सकते थे। CJI: या तो आप डिप्टी स्पीकर को फैसला लेने देते। बाद में कोर्ट उस पर विचार कर लेता। साल्वे: डिप्टी स्पीकर कार्रवाई करने के अयोग्य थे। दूसरे पक्ष का यह दावा भी गलत है कि हमने पार्टी सदस्यता छोड़ी है।
CJI: लेकिन दूसरे पक्ष का कहना है कि इस तरह तो कुछ MLA के ज़रिए स्पीकर को नोटिस भेज कर उन्हें काम करने से रोका जा सकता है।
साल्वे: इन बातों का नबाम रेबिया फैसले में जवाब दिया जा चुका है। हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। स्पीकर को इस पर फैसला लेने दीजिए।
CJI: साल्वे आप अपने बिंदुओं को ठीक से ड्राफ्ट कर हमें सौंपिए। हम कल 10 से 15 मिनट विचार करेंगे।
राज्यपाल के वकील तुषार मेहता: लोग एक विचारधारा को चुनते हैं। एक गठबंधन में चुनाव लड़कर, दूसरे के साथ सरकार बना लेना गलत है। राजेन्द्र सिंह राणा मामले में SC के फैसले का सार यही है।
शिंदे कैंप के वकील नीरज किशन कौल: दूसरा पक्ष कोशिश कर रहा है कि चुनाव आयोग को पार्टी चुनाव चिह्न पर कार्रवाई न करने दी जाए। लेकिन, यह अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है। सिंबल रूल्स में भी यही व्यवस्था है। उसे उसके काम से नहीं रोका जा सकता।
शिंदे गुट के एक और वकील महेश जेठमलानी: दूसरे पक्ष की दलील इसी बात पर है कि यह विधायक अयोग्य माने जाने चाहिए थे। लेकिन, सच यही है कि किसी ने उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया। फ्लोर टेस्ट की नौबत भी नहीं आई। सीएम ने खुद इस्तीफा दे दिया। उसके बाद राज्यपाल ने अपने विवेक से फैसला लिया।
उद्धव गुट का हलफनामा- शिंदे और बागी विधायक अशुद्ध हाथ लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई से पहले उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है। हलफनामे में कहा- महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार जहरीले पेड़ का फल है। इस जहरीले पेड़ के बीज बागी विधायकों ने बोए थे। शिंदे गुट के विधायकों ने संवैधानिक पाप किया है।
उद्धव गुट ने कहा- एकनाथ शिंदे और बागी विधायक अशुद्ध हाथ लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर झूठा बयान दिया। बागी विधायकों ने अपनी पार्टी विरोधी गतिविधियों को छिपाने के लिए ‘असली सेना’ के दावों के साथ चुनाव आयोग से संपर्क किया, यह समझ से परे है कि बागी विधायकों को महाराष्ट्र छोड़कर बीजेपी शासित गुजरात राज्य में क्यों जाना पड़ा?
असम में बीजेपी की गोद में बैठना पड़ा। यदि उन्हें अपने पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था तो ऐसा क्यों किया गया? कहने की जरूरत नहीं है कि गुजरात और असम में शिवसेना कैडर नहीं था। केवल बीजेपी कैडर था, जो विधायकों को पूरा साजो-सामान मुहैया करा रहा था।
शिंदे गुट बोला- याचिका खारिज हो
सोमवार को शिंदे गुट ने हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें कहा कि उद्धव गुट की याचिका को खारिज किया जाए। शिंदे गुट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने विधानसभा में बहुमत खो दिया था। शिवसेना में लोकतांत्रिक तरीके से विभाजन हुआ, इसलिए कोर्ट इसमें हस्तक्षेप ना करे। शिंदे गुट ने कहा कि शिवसेना पर फैसला चुनाव आयोग को लेने दें। कोर्ट में यह तय नहीं होगा कि विभाजन सही है या नही?
20 जुलाई को सुनवाई में शिंदे गुट ने कहा था कि उद्धव ने बहुमत नहीं होने पर इस्तीफा दिया था।
उद्धव के पास सिर्फ 16 विधायक, हम बागी कैसे?
शिंदे गुट ने पिछले सुनवाई में तर्क दिया था कि उद्धव ठाकरे के पास सिर्फ 16 विधायक है, जबकि हमारे पास 39 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में हम बागी कैसे हो गए? उद्धव की याचिका पर सुनवाई करने का मतलब है कि बहुमत का अपमान। शिंदे के वकील साल्वे ने कहा कि बहुमत से प्रधानमंत्री को भी हटाया जा सकता है।
कोर्ट में किन-किन याचिकाओं पर होगी सुनवाई?
1. शिंदे गुट के 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द के नोटिस के खिलाफ याचिका पर
2. डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर
3. शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने और फ्लोर टेस्ट के खिलाफ याचिका पर
4. शिंदे गुट को विधानसभा में शिवसेना दल के रूप मान्यता के खिलाफ याचिका पर
5. लोकसभा में शिंदे गुट को शिवसेना दल के रूप में मान्यता देने के खिलाफ याचिका पर
फैसले के कारण मंत्रिमंडल विस्तार अटका
30 जून को महाराष्ट्र के CM एकनाथ शिंदे के साथ डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली थी। उनके शपथ ग्रहण के बाद से मंत्रिमंडल विस्तार का कार्यक्रम अटका हुआ है। विधायकों की सदस्यता पर फैसला होने के बाद ही मंत्रिमंडल विस्तार होने की संभावनाएं है।
महाराष्ट्र सियासी संकट का पूरा घटनाक्रम जानिए
- 20 जून को शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए।
- 23 जून को शिंदे ने दावा किया कि उनके पास शिवसेना के 35 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेटर जारी किया गया।
- 25 जून को डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा। बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
- 26 जून को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस भेजा। बागी विधायकों को राहत कोर्ट से राहत मिली।
- 28 जून को राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा। देवेंद्र फडणवीस ने मांग की थी।
- 29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
- 30 जून को एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए।
- 3 जुलाई को विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में मान्यता दे दी। अगले दिन शिंदे ने विश्वास मत हासिल कर लिया।