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पेलोसी के ताइवान पहुंचते ही एक्शन में चीन:चारों तरफ से घेरा, लॉन्च कर दी मिसाइल ड्रिल; आखिर चीन की समस्या क्या है?

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nancy pelosi roared as soon as she stepped on Taiwans soil, said - the  world has two options, china reacted | ताइवान पर US का वार- दुनिया के पास  बस 2 विकल्प;

चीन की धमकी और बाइडेन की हिदायत के बावजूद अमेरिका की हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान पहुंच चुकी हैं। मंगलवार शाम नैंसी पेलोसी को लेकर अमेरिका का मिलिट्री जेट राजधानी ताइपेई में लैंड हुआ। इसके बाद से ही चीन बौखलाया हुआ है और उसने आनन-फानन में कई आक्रामक फैसले लिए हैं।

भास्कर एक्सप्लेनर में सबसे पहले पेलोसी के ताइवान पहुंचने के बाद चीन के बड़े रिएक्शन को जानते हैं…

1. चीन की आर्मी ने ताइवान को चारों तरफ से घेरा

PLA ने ताइवान के चारों तरफ 6 ‘नो एंट्री जोन’ घोषित किए हैं। यानी अब इन 6 रास्तों से कोई पैसेंजर प्लेन या शिप ताइवान नहीं पहुंच सकते हैं। चीन ने ताइवान के चारों ओर अपने J-20 फाइटर जेट और युद्धपोतों की तैनाती कर दी है। ऑस्ट्रेलिया की मेलबर्न यूनिवर्सिटी के एशिया इंस्टीट्यूट में पढ़ाने वाले डॉ. सो कीट टोक कहते हैं कि चीन ताइवान से पेलोसी के विमान को जाने तक से रोक सकता है। पेलोसी और अन्य सांसदों को लेकर जा रहा विमान रोकने के लिए चीन हवाई नाकेबंदी कर सकता है।

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA ताइवान में के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल की घोषणा करते हुए ये नक्शा जारी किया है। इसमें लाल घेरे में उन 6 जगहों को दिखाया गया है जहां PLA मिलिट्री ड्रिल कर रही है।

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA ताइवान में के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल की घोषणा करते हुए ये नक्शा जारी किया है। इसमें लाल घेरे में उन 6 जगहों को दिखाया गया है जहां PLA मिलिट्री ड्रिल कर रही है।

2. चीनी आर्मी ने मिलिट्री ड्रिल शुरू की

चीन ने नॉर्थ, साउथ-वेस्ट और साउथ-ईस्ट में ताइवान के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल, यानी सैन्य अभ्यास की घोषणा की है। पेलेसी के ताइवान पहुंचने पर चीन ने ताइवान के पूर्व में समुद्र में मिसाइलों का परीक्षण भी किया। चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा है कि असली हथियारों और गोला-बारूद से ये अभ्यास इस पूरे हफ्ते तक किया जाएगा। PLA ईस्टर्न थिएटर कमांड के प्रवक्ता सीनियर कर्नल शी यी ने कहा कि सैन्य अभ्यास के दौरान लॉन्ग रेज लाइव फायर शूटिंग की जाएगी। साथ ही मिसाइल का भी टेस्ट होगा।

3. ताइवान पर इकोनॉमिक सैंक्शन लगाए

चीन ने ताइवान को नेचुरल सैंड के देने पर रोक लगा दी है। इससे ताइवान को काफी नुकसान हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद से कंस्ट्रक्शन और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट ताइवान के लिए इनकम का सोर्स बन गया है। ऐसे में सैंड, यानी रेत का निर्यात रोकने से ताइवान को आर्थिक नुकसान होगा। चीन के उप विदेश मंत्री झी फेंग ने अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न्स को समन किया है। फेंग ने कहा कि पेलोसी के ताइवान दौरे के गंभीर नतीजे होंगे।

4. अमेरिका को सीधी धमकी- जो आग से खेलेंगे, वो जलेंगे

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि अमेरिका ताइवान का इस्तेमाल चीन को घेरने के लिए कर रहा है। अमेरिका लगातार ‘वन चाइना पॉलिसी’ को चुनौती दे रहा है। अमेरिका का यह रुख आग से खेलने जैसा है और यह बहुत ही खतरनाक है। जो आग से खेलेंगे, वो खुद जलेंगे।

अब जानिए 2.3 करोड़ आबादी वाला ताइवान, दुनिया की दो सुपर पॉवर्स के झगड़े की वजह क्यों बन रहा है…

चीन मानता है कि ताइवान उसका एक प्रोविंस है, जबकि ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है। इस झगड़े को समझने के लिए दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के वक्त में जाना होगा। उस समय चीन के मेनलैंड में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कुओमितांग के बीच जंग चल रही थी।

1949 में माओत्से तुंग की लीडरशिप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और कुओमितांग के लोग मेनलैंड छोड़कर ताइवान चले गए। कम्युनिस्टों की नौसेना की ताकत न के बराबर थी। इसलिए माओ की सेना समंदर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के माओत्से तुंग और कुओमितांग के चियांग काई शेक की तस्वीर। सितंबर 1945 में जापान पर जीत का जश्न मनाते हुए। इसी के बाद चीन में दोनों पार्टियों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के माओत्से तुंग और कुओमितांग के चियांग काई शेक की तस्वीर। सितंबर 1945 में जापान पर जीत का जश्न मनाते हुए। इसी के बाद चीन में दोनों पार्टियों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया।

चीन का दावा है कि 1992 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और ताइवान की कुओमितांग पार्टी के बीच एक समझौता हुआ। इसके मुताबिक दोनों पक्ष एक चीन का हिस्सा हैं और राष्ट्रीय एकीकरण के लिए मिलकर काम करेंगे। हालांकि, कुओमितांग की मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी 1992 के इस समझौते से कभी सहमत नहीं रही।

शी जिनपिंग ने 2019 में साफ कर दिया है कि वो ताइवान को चीन में मिलाकर रहेंगे। उन्होंने इसके लिए ‘एक देश दो सिस्टम’ का फॉर्मूला दिया। ये ताइवान को स्वीकार नहीं है और वो पूरी आजादी और संप्रभुता चाहते हैं।

अमेरिका-चीन के रिश्तों में ताइवान सबसे बड़ा फ्लैश प्वाइंट

अमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए और ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिए। हालांकि, चीन के ऐतराज के बावजूद अमेरिका ताइवान को हथियारों की सप्लाई करता रहा। अमेरिका भी दशकों से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अस्पष्ट नीति अपनाता है।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फिलहाल इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया।

इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ आक्रामक कर दी है। NYT में अमेरिकी विश्लेषकों के आधार पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सैन्य क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि ताइवान की रक्षा में अमेरिकी जीत की अब कोई गारंटी नहीं है। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।

अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।

चीन पर हमेशा हमलावर रही हैं नैंसी पेलोसी

नैंसी पेलोसी लंबे वक्त से चीन की आलोचक रही हैं। 1991 में अपने बीजिंग दौरे के वक्त पेलोसी अपने साथी नेताओं और रिपोर्टर्स के साथ थियानमेन स्क्वॉयर पहुंची और एक बैनर लहराया। इसमें लिखा था- उनके लिए जो चीन में डेमोक्रेसी के लिए मारे गए।

नैंसी पेलोसी लंबे वक्त से चीन की आलोचक रही हैं। 1991 में अपने बीजिंग दौरे के वक्त पेलोसी अपने साथी नेताओं और रिपोर्टर्स के साथ थियानमेन स्क्वॉयर पहुंची और एक बैनर लहराया। इसमें लिखा था- उनके लिए जो चीन में डेमोक्रेसी के लिए मारे गए।

पेलोसी वहां से टैक्सी से चली गईं, लेकिन पुलिस ने रिपोर्टर्स को अरेस्ट कर लिया। थियानमेन स्क्वॉयर वही जगह है, जहां 1989 में छात्र डेमोक्रेसी की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे और सेना ने उन पर गोलियां चला दी थीं। इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी।

नैंसी पेलोसी दलाई लामा और तिब्बत के अधिकारों की भी समर्थक रही हैं। 2015 में चीनी अधिकारियों से अनुमति लेकर वो तिब्बत की राजधानी ल्हासा भी गई थीं। इस बार भी पेलोसी के ऑफिशियल टूर में ताइवान का जिक्र नहीं था, लेकिन अचानक ताइवान पहुंचकर उन्होंने दिखा दिया है कि वो चीन की मुखर आलोचक हैं।

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